कमलपूर नाम का एक गाँव था। उस गाँव में दीपक ओर कल्याणी नाम के पति - पत्नी रहते थे। कल्याणी का मायका पड़ोस का गाँव था। ओर दीपक साधारण लड़का था. भोला भाला था उसकी खेती थी वह खेती करता था। वह बोहोत सारे काम किया करता था। दीपक की खेती उसकी जान थी। हर रोज़ काम करने के बाद भी फसल अच्छी नहीं आती थी। दीपक बोहत परेशान रहने लगा। दीपक की जिंदगी बेहद परेशानी में थी। दीपक सोचता रहता था. घर मे खाना कैसे बनेगा??? पैसा कहा से आयेगा??? दीपक को खेती के बावजूद दुसरा काम नही आता था। फिर दीपक ने अपनी खेती छोड़ कर दूसरों के खेती में काम करना शुरू कर दिया। दीपक को उसका मालिक बोहत सारे काम करवाने लगा ओर हफते का मुनाफा सिर्फ १००₹ देता था। दिपक अपने मालिक को बोला १००₹ में, मेरा घर कैसे चलेगा??? मालिक ने कहा- अगर तुम्हें काम करना है तो १००₹ लेने होगे. नही तो तुम कलसे काम पर आना बंद कर दो। ऐसा बोल कर मालिक चल पड़ा। दिपक मायूस होकर घर आया। चार पाईं पर बैठ कर सोचते रह गया। दिपक की उम्मीद अब टूट गई। दीपक की उम्मीद खो चुकी थी। कल्याणी- पानी लेकर आई. पति को मायूस देख कर कल्याणी उदास हो जाति है। दीपक को पूछने लगीं, क्या हुआ आप उदास किंव हो??? में कुछ दिनों से देख रही हूँ आप बोहत परेशान है। मुझसे बात नहीं करते??? खोये- खोये से रहते है। खाना भी ठीक से नहीं खाते क्या बात है??? पत्नी कल्याणी की बातें सुन कर दीपक का मन भर आया, उसके आखों में आसू थे. पत्नी कल्याणी को दीपक ने सारी बातें बताई, दीपक ने कहा मेरी उम्मीद खो चुकी है अब। कल्याणी- आप निराश किंव होते हो हंम दोनों मिलकर काम करेंगे। में भी कल से अपनी खेती में काम करने आऊंगी. आप हौसला रखो सब ठीक होगा। आप खाना खाने आजाओ ऐसा बोल कर कल्याणी रसोई में चली जाती है। दोनों खाना खा के सो जाते है। कल्याणी अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर घर का सारा काम जल्दी - जल्दी खत्म कर लेती है। दोनों साथ -साथ खेत में चले जाते है। कल्याणी साथ में खाना ओर पानी लेती है। बोहोत दिनों से दीपक खेतों में गया नहीं था। उसकी खेत ज़मीन बंनजर गिरीं थी। धरती सुख चुकीं थी। कल्याणी जमीन की सफाई करने लगी। दीपक के खेतीं मे पानी नहीं था। इस लिये जमीन बनजार होगई थी। दोनों अपना काम खत्म करने के बाद खाना खाकर घर चले गये। कल्याणी के मदद से दीपक खुश था। ओर परेशान भी किंव की कल्याणी घर का काम कर के खेती का काम कर रही थी। दीपक सो गया. लेकीन कल्याणी अपने गहने जमा करने लगी। अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर फिर से अपना घर का काम निपट लेती है। तभी दीपक वह आता है। फिर कल्याणी दीपक के हात में अपने गहने थमा देती है। ओर कहती है यह गहने गिरवी रखो ओर पैसे लेकर आई ये। दीपक मना करता है। लेकिन कल्याणी दिलासा देती है। हमारे पास जादा पैसे तो हे नहीं. सिर्फ गहने ही है। तो आप गहने गिरवी रखो ओर जब फसल अच्छी होगी तब गहने वापस छुड़ा लेंगे मेरे बात पर विश्वास रखो ऐसा बोल कर कल्याणी खेत में जाती है। कुछ देर बाद दीपक गहनों के पैसे लाता है। फिर दीपक कहता है इन पैसो से क्या करना है। कल्याणी कहतीं है कि खेत में एक कुहां गुदवाते है। ओर खेती के लिए थोड़े बिज ले आते है। अगले दिन हमेंशा की तरह कल्याणी घर का काम करती है। दीपक खेत में जाकर कुहां खुदवाता है। ओर कल्याणी बजार से खेती के लिए कुछ बिज लाती है। कुहें को अच्छा पानी लगता है। दोनों पति - पत्नी कड़ी मेहनत से खेत में काम करते है। ओर फसल अच्छी होती है। दोनों पति - पत्नी अब खुशाल जिंदगी बिताने लगते है।इस तरह दीपक की खोई हुई उम्मीद फिर से लोटती है।