"ये कहानी है कलयुग की, आज के युग की, यह कहानी है दादी और पोती की," सत्य घटना पर आधारित. वो पोती जो अपने दादी से बोहत प्यार करती है।
            
             एक शांति निवास नाम का शानदार मकान था, उस मकान के सामने एक प्यारा सा बगीचा था,  बगीचे में हर एक रंग की गुलाब के फूल थे, उन फूलों से बगीचा बोहत ही आकर्षित बना हुवा था, वह बगीचा शांति याने (दादी जी ने खुद बनाया था) उस बगीचे से दादी जी  बोहोत प्यार करती थी।
                 एक दिन शांति जी अपने बेटे की शादी करवाती है। लड़की का नाम,(बहु) कावेरी था, और शांति जी के बेटे का नाम अर्जुन था, कावेरी शांति जी के मोसेरे भाई की बेटी थी। अर्जुन और कावेरी की शादी के बाद सब ठीक था शादी को एक साल  हो चुका था
               अचानक से शांति जी बीमार हो गई शांति जी को एडमिट किया उन्हें शुगर था । और शुगर बडचुका है। शांति जी को सलाइन लगी थी। वह गहरी नींद में सो रही थी। तभी अर्जुन और कावेरी शांति जी को खाना लेकर आगाये.
                 शांति जी अपने नाम की तरह शांत स्वभाव की थी। रंग गोरा, सफेद बाल, 5 फिट लंबी, थोड़ी सी मोटी, चेहरे पर थोड़ी झुरनिया थी। शांति जी के पति गुजरने के बाद शांति जी सफ़ेद साड़ी में हल्का गुलाबी, नीला येसेही रंग की साड़ी पहना करती थी। शांति जी के स्वभाव से हर कोई उनके करीबी बन जाता था। आस पास के लोग उनकी सहेलियां, छोटे बच्चे हर कोई शांति जी से प्यार करता था सिवाय उनके बहु के,
                 हर कोई शांति जी के बारे में सब अच्छा बोला करते थे तो कावेरी को पसंद नही था। कावेरी को ऐसा लगता था की सब उसकी तारीफ करे, उसीके ही गुण गान गए लेकिन येसा नही था। कावेरी  सब से घुसे से बात करती थी । इस लिए कावेरी को कोई पसंद नही करता था।
                 8 दिन बीत चुके थे अब शांति जी को शाम के 6 बजे छुट्टी मिलने वाली थी। 8 दिन में हॉस्पिटल का खर्चा बोहात हूवा था। बिल भर कर अर्जुन अपनी मां शांति जी को घर लेकर आता है।
  शांति जी अपने कमरे में जा कर लेटती है। उम्र के हिसाबसे वह अब कमजोर हो गई है। अर्जुन खाने की प्लेट और पानी जूस लेकर मां के कमरे में आता है। अपनी मां को उठाकर अपने हात से खाना खिला कर जाता है
                    अर्जुन भी शांति जी के तरा शांत स्वभाव का था किसी के भी बातों में वह जल्दी आता था।
                  कुछ दिनों बाद कावेरी को दिन रहते है। शांति जी बोहात खुश होती है। अर्जुन के बाद पहली बार घर में छोटा बच्चा आने वाला है सुनकर उसकी खुशियां आसमान में उड़ने लगती है।
                 शांति जी कावेरी का खयाल रखने लगी थी। उसका खान पान, गोलियां, घर का काम सब अकेले किया करती थी। लेकिन कावेरी बोहत ही खुदगर्ज थी। उस को अपनी सास काम करते देख उस को बहुत ही मजा आता था। और मन ही मन में अपनी सास को गालियां देती थी
                 आस पास के लोग शांति जी को कहते थे कि कावेरी का काम मत किया करो वह बहुत ही खुदगर्ज है। कावेरी जैसी लड़किया इस सेवा के काबिल नही है आपके आराम करने के दिन है काम करने के नही! लेकिन शांति जी किसकी बाते सुनने को तैयार नहीं थी।
                    अर्जुन तो अपनी पत्नी कावेरी के प्यार में पागल हो चुका था। अर्जुन को सही गलत कुछ समझ में नहीं आता था। सिर्फ उसको अपनी पत्नी ही चारो तरफ दिखाई देती थी। अर्जुन पूरी तरा कावेरी के मुट्ठी में था
                कावेरी अर्जुन को शांति जी के बारे में उठ पठांग बाते कहा करती थी। और अर्जुन बिना समझे देखे अपनी मां को ढेर सारी बाते सुनाया करता था लेकिन मां शांति जी चुप चाप आसुओका घुट अंदर ही अंदर पी लेती थी।
             पड़ोस के लोग अर्जुन की बाते सुन कर थक से रह गए। अपनी मां से वो ऊची आवाज में चिल्ला चिल्ला कर बात कर रहा था। पड़ोस में ही शांति जी की दोस्त ललिता जी रहती थी। वह सारी बाते सुनती रही; उसको विश्वास नही हो रहा था की अर्जुन ये सब अपनी मां को बोल रहा है???
                  ललिता जी के अखोसे न चाहते हुवे भी आखों से पानी बह रहा था। वह रोना तो नही चाहती थी लेकिन अपने आसुओको काबू नही कर पाई ललिता जी अपने पति और बेटे को कहने लगी!
                क्या अर्जुन कावेरी के प्यार में इतना अंधा हो गया है??? उस को मां प्यारी नही है??? क्या अर्जुन मां का प्यार भूल चुका है??? कीव शांति ये सब सेहन करती है???
                   लेकिन ललिता जी और उसका परिवार इस मामले में कुछ नही कर सकता था। कीव की वो मामला उनके घर का था।
                   अर्जुन के इस वेवहार से शांति जी अब उदास, दुखी, हर वक्त सोच में पड़ी रहती है। कुछ दिन बीत जाने के बाद कावेरी की डिलिवरी होती है। कावेरी को लड़की होती है।शांति जी बोहुत खुश होती है। और अर्जुन भी, 4 दिन बाद कावेरी की हस्पताल से छुट्टी होती है।
                       शांति जी कावेरी और नन्हे महिमान की आरती उतार कर स्वागत करती है। शांति जी अपना सब दुख तकलीफ भूल कर कावेरी की सेवा में लग गई थी। बच्ची को नेहलाना, उसको तयार करना सारा काम अकेले करती थी। इन सब में वक्त बीत गया अब छोटी परी अब चलने लगी थी।
                        कावेरी को अब शांति जी का बच्ची के प्रति बढ़ता प्यार देख कर मन में जलने लगी थी बच्ची का नाम करण रखा उसका नाम ममता रखा ममता बहुत ही प्यारा नाम था। ममता अब उसकी दादी याने शांति जी के बिना एक पल भी नही रहती कावेरी का अपनी दादी के प्रति बहुत ही लगाव था उसे कावेरी चीड़ जाति थी।
                           धीरे धीरे अब कावेरी बढ़ी होने लगी थी और दूसरी तरफ कावेरी शांति जी को तकलीफ देने लगी थी। शांति जी अब थक चुकी है पहले से जाड़ा कमजोर हो गई अपनी  उम्र के अनुसार अब काम जाड़ा नही कर पाती थी। कुछ साल बीत गए थे कावेरी स्कूल जाने लगी थी। स्कूल से लाने और छोड़ ने शांति जी जाति थी।
                              ममता शांति जी याने अपनी प्यारी दादी से अपनी मां पापा से जाड़ा प्यार करती थी। एक दिन कावेरी अर्जुन से झगड़ा करती है मुझे तुम्हारे मां के साथ नही रहना एक दिन आप की मां मुझे और मेरे बेटी को एक दूसरे से अलग करवा के रहेगी और उपरसे उनके दवाई का खर्चा कहासे आयेंगे इतने पैसे कुछ मेरी बात समझ में आती है या नही???
                    ऐसा बोल कर कावेरी रसोई में चली जाती है। जब कावेरी अर्जुन से बहस कर रही थी तब शांति जी सब सुन रही थी। शांति जी अपने कमरे में आकर फुट फुट कर रोने लगी बेचारी शांति जी इस उम्र में जाति तो कहा जाति तभी वहा पे ममता आती है। ममता अपनी दादी को कहानी सुनाने के लिए कहती है। और दादी प्यार से ममता को कहानी सुनाकर सुलाती है।
                        कुछ दिनो बाद ममता की परीक्षा थी। तो कावेरी उसको पढ़ने में लगी रहती थी। और वक्त पर कोई काम नहीं करती शांति जी कभी कभी खाली पेट ही सो जाति थी। अर्जुन अपनी मां के प्रति बहुत लापरवाह हो गया था। कभी वक्त पर गोलियां डॉक्टर के पास नही ले जाता था। उसे शांति जी की तबियत और भी खराब हो गई थी।
                        ममता की परीक्षा खतम हो गई थी। कावेरी ने अपने भाई को बुलाया था। कुछ दिनो के लिए तो ममता उसे घुलमिल गई थी। दो चार दिन बाद कावेरी और अर्जुन ममता को छुट्टी के लिए कुछ दिन भेजते है। और यहा शांति जी बेचारी अकेली हो जाति है। ममता जाने के बाद शांति जी अपने कमरे में छुप सी बैठा करती थी।
                           फिर से एक दिन कावेरी और अर्जुन के बीच जोर जोर से बेहेस हो रही थी। सुबह का वक्त था। शांति जी सो रही थी दोनो के आवाज आने लगे तो उठ गई फिर जा के देखा तो दोनो को आपस में लड़ाई चालू थी। कावेरी और अर्जुन के रोज रोज के झगड़े से शांति जी परेशान हो गई थी। शांति जी नहा कर आई रोज की तरा पूजा करके बेटी थी तभी अर्जुन वहा आता है।
                          शांति जी कुछ कहने से पहिले अर्जुन बोला  मां शाम को तैयार रहना और तुम्हारे साड़ीया  एक बैग में समेट लेना ऐसा बोल कर ऑफिस चला जाता है। अर्जुन के जाने के बाद कावेरी शांति जी को बोलती है मेरी जिंदगी नरक बना कर रखी है आपने और मेरी बेटी को मुझसे अब दूर करना चाहती है।
                         वहा से शांति जी अपने कमरे में आके अपना सामान समेटने लगती है। फिर बाहर ठहलने निकलती है। बाहर एक उनकी पड़ोस की  दोस्त मिलती है शांति जी का उतरा हूवा चेहरा देखकर शांति जी को उनके हाल –चाल के बारे में पूछा शांति जी रूखे आवाज में और शांति से कहा जी ठीक हू आप कैसे हो और घर में सब ठीक हे ना शांति जी ने कहा और दोनो बाते करते करते ठहल्ने निकल गई
                         घूमते घूमते शाम हो गई हलका अंधेरा होने लगा था। शांति जी अब घर आ गई थी। थोड़ी देर बैठी और पानी पीने लगी तभी अर्जुन ऑफिस से आते ही शांति जी को बोला की सारी प्याकिंग हो गई तो शांति जी ने कहा हा होगई लेकिन हम जा कहा रहे है???
                            अर्जुन ने कहा में परेशान हो गया हूं रोज रोज के झगड़े से आप तो सुनती ही होगी. कावेरी का केहना है की आप उसको और ममता को अलग कर रही है। तब शांति जी बोलती है बेटा में ऐसा कीव करूंगी उन दोनो मां बेटी को अलग करके मुझे क्या मिलेगा??? ममतको मेरा लगाव है इसलिये वह मेरे पास रहती है। और इसमें बुरा क्या है??? क्या पोती अपनी दादी के पास नही रह सकती??? फिर अर्जुन ने कहा मैने कावेरी को बोहूत समझाया लेकिन उसने मेरी बात नही मानी और ने रोज के झगड़े से परेशान हो चुका हूं तुम तो मेरी बात समझो फिर शांति जी ने कुछ आगे बोला नही चुप से सारी बाते सुनती रही और अंदर ही अंदर घुटन मेहसूस करने लगी
                           अर्जुन खड़ा हुआ और बोला हमने फेसला किया है की हम आपको रूधा आश्रम में रखेंगे और आठ बजे निकलना है। ऐसा बोल कर अर्जुन चला जाता है। शांति जी को विश्वास नही हो रहा की उनका अर्जुन ऐसा कुछ बोलेगा लेकिन सच तो यही ही की अर्जुन ने शांति जी को आश्रम में रखनेका फेसला किया. शांति जी ने खुद को संभाला और अपने कमरे में आकर अपने कपड़ों का बैग लेकर हॉल में रखने लगी शांति जी को रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन अपने आसूओ का अंदर ही अंदर घुट पी रही थी। और बार बार अपनी पोती ममता का खयाल आराहा था। शांति जी करती तो क्या करती बेचारी अपनी पोती को देख भी नही पाई थी। थोड़ी हिम्मत जुटा कर अर्जुन से कहा बेटा ममता की याद आरही है उसे एक फोन तो करो लेकिन अर्जुन ने साफ मना किया और दोनो गाड़ी की तरफ आए                                                                               
                             शांति जी ने एक बार घर की तरफ देखा और नजर भर के अपने कष्ट से बंधा घर और बगीचा देखते हुवे आसुका एक घुट पी कर गहरी सांस ली और गाड़ी में आकर बैठी और अर्जुन ने बैग डिकी में रखी और ड्रायवार की जगा बैठ कर कार चलाने लगा पूरा सफर दोनो ने चुप रहकर बिताया। कुछ घंटों बाद दोनो आश्रम में पोहंचे अर्जुन ने आश्रम के मैनेजर से कुछ बातचीत की ओर कुछ कागजाद जमा किया और अपनो मां को पैसे दिए और वहासे चला गया। शांति जी अभी तक खामोश थी।आश्रम के वॉर्डन ने शांति जी का परिचय वहाके लोगोसे किया
                       अगले दिन शामको ममता दादी दादी दादी चिला चिला कर घर में अपनी दादी को ढूंढने लगी तब वहा पर अर्जुन और कावेरी दोनो भी आए और बोलने लगे बेटा तुम इतनी जल्दी आगाई तभी कावेरी के भाई ने कहा क्या बताए दीदी ममता को अपने दादी की बहुत याद अराही थी और रोने लगी इस लिए में इसे यहाँ ले आया और पानी पीते हुवे नीचे बैठा और कुछ देर बातचीत करके घरके लिए निकल गया।
                        ममता का रो रो कर बुरा हाल हो गया था वह हर तरफ उसने दादी को ढूंढा लेकिन दादी नही मिली तो अर्जुन के पास आकर बोली मां पापा दादी कहा है मुझे मिलना ही तब कावेरी बोलती है। बेटा दादी रिश्ते दर के यहां गई है जल्दी ही लोट आएगी तुम कुछ खा कर सो जाओ कुछ देर रोने के बाद ममता सो गई उसने खाना नही खाया
                       ममता हर रोज आपने मां पापा से अपनी दादी के बारेमे पूछती रहती थी। ऐसे ही कुछ साल बीत जाते है। आश्रम में शांति जी सबसे घुल मिल चुकी थी। शांति जी भी हर रोज अपनी प्यारी मानता की याद में रोती थी। वहा के कुछ उनकी उम्र की महिलाए शांति जी को समझा ती थी लेकिन शांति जी बेचारी क्या करती पोती के प्यार से मन भर के आता था।
                           ममता अब ग्यारा साल की हो गई है। इन सालो में एक दिन भी ऐसा नहीं था की उसने अपनी दादी के बारे पूछा नही होगा घर में अर्जुन और कावेरी परेशान रहते थे ममता के सवाल से और आश्रम में शांति जी का भी ममता जैसा ही हाल था। आश्रम में सब ममता और शांति जी के प्यारे रिश्ते से वाकिफ थे। और उनकी बहू और बेटे के व्यवहार से सब नफरत करते थे।
                           एक दिन ममता के स्कूल का क्यंप आश्रम में रखा था उसमे ममता का भी नाम था तो ममता भी स्कूल से गई थी क्यांप में फिर वहा जा कर कुछ व्याखान, परिपाट और कुछ खेल हूवे थे और वहा सब बच्चे मजे कर रहे थे । फिर अचानक से ममता की नजर एक बुजुर्ग महिला पर गई ममताको लगा की उसकी दादी याने शांति जी हे लेकिन ममताने नजर अंदाज किया  पर  ममता अपनी दादी से बहुत प्यार करती थी। इस लिए ममता को लगा की उसका वेहेम है लेकिन न जाने कीव ममता को बार बार उस बुजुर्ग महिला का चेहरा सामने से जा नही रहा था।
                      और शांति निवास में अर्जुन और कावेरी को पता लगता है की ममता का क्यांप वृद्ध आश्रम गया है जहा पे शांति जी है। तो दोनो आश्रम की ओर निकल पड़ते है। लेकिन इन सब से बे खबर
थी शांति जी, रात हो चुकी थी ममता अपने क्यांप में सो रही थी। देर रात अर्जुन और कावेरी आश्रम पोहछते है। लेकिन गार्ड ने अंदर अनीस माना किया किसकी आश्रम में बाहर के लोग रात 7 से सुबह के 9 बजे तक नहीं सकते थे। आश्रम का रुल था। इस लिए अर्जुन और कावेरी वहसे निकल कर एक होटल में कमरा लेते है।
                       अगली सुबह फिर से परिपाठ होता है उसके बाद योगा होता है। उसके बाद नाश्ता फिर नाश्ते के बाद छोटा ब्रेक था। तब बच्चे खेल रहे थे कुछ बच्चे बैठे थे। तो कुछ घूम रहे थे। ममता कल की बात भूल चुकी थी वो भी अपने दोस्तो के साथ लगोरी खेल रही थी।
                             खेलते खेलते बॉल वहा बैठी बुजुर्ग महिलाओंके पास चला गया तभी वहा दौड़ते दौड़ते ममता आई और अपना बॉल ढूंढने लगी फिर एक महिला ने उसके पास पड़ा बॉल ममता को दिया और ममता ने बॉल हात में लेकर महिला के तरफ देख के बोली थांककिव लेकिन जब ममताने देखा की वह महिला कोई और नहीं अपनी दादी है तो उसके होश उड़ से गए ममता अपनी दादी को कमर से पकड़ कर जोर जोर से रोने लगी आजू बाजू के सब लोग देखने लगे दादी और पोती एक दूसरे के लिए रो रहे थे। तभी वहा मैनेजर आता है और वो कहता है बेटा कीव इतनी रो रही हो???
                          तभी ममता कहती है सर ये मेरी दादी है। और दादी को कहती है दादी अपना इतना बड़ा घर होकर भी आप यहां कीव रहती हो चलो हम घर चलते है। तभी दादी बोलती है बेटा में नही आसक्ति तब ममता कहती है लेकिन कीव आप नही चल रही हो तभी वहा मौजूद कुछ महिला ये ममता को सारी हकीकत बताती है।
                            ममता को ये सारी बाते सुनकर बहुत दुख होता है। और उसके मां पापा इतने गंदे हो सकते है इसपर ममता का विश्वास ही नहीं हो रहा था लेकिन वह करती तो क्या करती ममता तो इस वक्त सिर्फ रोई जा रही थी। और ये सारी बाते अर्जुन और कावेरी सुनते है अब ममता और शांति जी को मुंह दिखा ने में शर्म आती है और शर्मिंदगी से दोनो ममता और शांति जी को लेकर घर आते है
                         इस प्रकार दादी और पोती फिर से मिल जाते है।